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(182) अगर किसी चीज़ को धोने के बाद यह यक़ीन हो जाये कि वह पाक हो गई है, और बाद में यह शक पैदा हो कि उससे ऐने निजासत को दूर किया है या नहीं तो अगर यह जानता हो कि उस जगह तक पानी पहुँच चुका है तो वह चीज़ पाक है।

(183) अगर वह ज़मीन नजिस हो जाये जिसमें पानी जज़ब हो जाता है, यानी वह ज़मीन जिसकी ऊपरी सतह पर रेत या बजरी हो, अगर उसे क़लील पानी से पाककिया जाये तो उसका ऊपरी हिस्सा पाक हो जायेगा लेकिन नीचे का हिस्सा नजिस रहेगा।

(184) अगर वह सख़्त ज़मीन जिसमें पानी जज़ब न होता हो या वह ज़मीन जिस पर पत्थर या ईंटों का फ़र्श हो, नजिस हो जाये तो क़लील पानी से पाक हो सकती है लेकिन ज़रूरी है कि उस पर इतना पानी डाला जाये कि पानी उस पर बहने लगे, अगर उस पर डाला जाने वाला पानी किसी सुराख़ से बाहर निकल जाये तो वह ज़मीन पाक हो जायेगी। और अगर वह पानी ख़ुद से बाहर न निकल सके तो जमा शुदा पानी को किसी कपड़े, बर्तन या पानी जज़ब करने वाले किसी दूसरे ज़रिये से उठा लिया जाये और एहतियात यह है कि उस पर एक बार फिर पानी डाला जाये और पहले की तरह उस पानी को भी उठा लिया जाये।

(185) अगर नमक का डला या उस जैसी कोई और चीज़ ऊपर से नजिस हो जाये तो क़लील पानी से पाक हो सकती है।

(183) अगर नजिस शकर से क़ंद बाना लें और उसे कुर या जारी पानी में डाल दें तो वह पाक नहीं होगा।

2- ज़मीन

(184) ज़मीन पैर के तलवे और जूते के निचले हिस्से को चार शर्तों के साथ पाक करती है।

(1) यह कि ज़मीन पाक हो।

(2) एहतियात की बिना पर ज़मीन ख़ुश्क हो।

(3) एहतियाते लाज़िम की बिना पर निजासत ज़मीन पर चलने से लगी हो।

(4) अगर ऐने निजासत जैसे ख़ून व पेशाब या मुतनज्जिस चीज़ जैसे नजिस गारा, पैर के तलवे या जूते के निचले हिस्से में लगी हो वह रास्ता चलने से या पैर ज़मीन पर रगड़ने से दूर हो जाये तो पैर या जूते का तलवा पाक हो जायेगा। लेकिन अगर पैर या जूते के तलवे से ऐने निजासत ज़मीन पर चलने या ज़मीन पर रग़ने से पहले दूर हो गई हो तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर ज़मीन से पाक नहीं होंगे। यह भी  ज़रूरी है कि जिस ज़मीन पर चला जाये उसके ऊपरी हिस्से पर मिट्टी, पत्थर, ईंटों का फ़र्श या उन से मिलती जुलती कोई और चीज़ हो, क़ालीन, दरी चटीई और घास आदि पर चलने से पैर या जूते का नजिस का तलवा पाक नहीं होता।

(185) अगर पैर का तलवा  या जूते का निचला हिस्सा नजिस हो, तो डामर या लकड़ी के बने हुए फ़र्श पर चलने से उनका पाक होना मुश्किल है।

(186) पैर के तलवे या जूते के निचले हिस्से को पाक करने के लिए बेहतर है कि पंद्रह हाथ या उससे ज़्यादा फ़ासिला ज़मीन पर चले चाहे पंद्रह हाथ से कम चलने या पैर ज़मीन पर रगड़ने से निजासत दूर हो गई हो।

(187) ज़रूरी नहीं है कि पैर या जूते का नजिस तलवा तर ही हो बल्कि अगर ख़ुश्क भी हों तो ज़मीन पर चलने से पाक हो जाते हैं।

(188) जब पैर या जूते का नजिस तलवा, ज़मीन पर चलने से पाक हो जाये तो उसके अतराफ़ के वह हिस्से भी जिन्हें आम तौर पर कीचड़ वग़ैरा लग जाती है पाक हो जाते हैं।

(189) अगर कोई इंसान हाथ की हथेलियों और घुटनों के बल चलता हो और उसका घुटना या हथेली नजिस हो जाये, तो ज़मीन पर चलने से उसकी हथेली या घुटने का पाक होना मुश्किल है। यही सूरत लाठी और मसनूई टांग के निचले हिस्से, चौपायों के नाल, मोटर गाडियों वग़ैरह के पहिय्यों की है।

(190) अगर ज़मीन पर चलने के बाद निजासत की बू या रंग या वह बारीक ज़र्रे जो नज़र न आते हों पैर या जूते के तलवे से लगे रह जायें, तो कोई हरज नहीं है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि ज़मीन पर इतना चला जाये कि वह भी ख़त्म हो जायें।

(191) जूते का अंदरूनी हिस्सा ज़मीन पर चलने से पाक नहीं होता और ज़मीन पर चलने से मोज़े के निचले हिस्से का पाक होना भी मुश्किल है। लेकिन अगर मोज़े का निचला हिस्सा चमड़े या चमड़े से मिलती जुलती किसी चीज़ से बना हो तो वह ज़मीन पर चलने से पाक हो जायेगा।

3- सूरज

(192) सूरज- ज़मीन, इमारत और दीवार को इन पाँच शर्तों के साथ पाक करता है।

(1) नजिस चीज़ इस तरह तर हो कि अगर दूसरी चीज़ उससे लग जाये तो तर हो जाये। लिहाज़ा अगर वह चीज़ ख़ुश्क हो तो उसे किसी तरह तर कर लेना चाहिए ताकि धूप से ख़ुश्क हो।

(2) अगर किसी चीज़ में ऐन निजासत हो तो धूप से ख़ुश्क करने से पहले उस चीज़ से निजासत को दूर कर लिया जाये।

(3) कोई चीज़ धूप में रकावट न डाले। अगर धूप परदे, बादल या ऐसी ही किसी चीज़ के पाछे से नजिस चीज़ पर पड़े और उसे ख़ुश्क करदे तो वह चीज़ पाक नहीं होगी। अलबत्ता अगर बादल इतना हलका हो कि धूप को न रोके तो कोई हरज नहीं है।

(4) सूरज तनहा नजिस चीज़ को ख़ुश्क करे। लिहाज़ा अगर नजिस चीज़ हवा और धूप से ख़ुश्क हो तो पाक नहीं होगी। हाँ अगर हवा इतनी हलकी हो कि यह न कहा जा सके कि नजिस चीज़ को ख़ुश्क करने में उसने भी कोई मदद की है तो फ़िर कोई हरज नहीं।

(5) इमारत की बुनियाद या वह हिस्से जो नजिस हो गये है, वह धूप से एक ही बार में ख़ुश्क हों। लिहाज़ा अगर धूप एक बार नजिस ज़मीन या इमारत पर पड़े और उसके ऊपरी हिस्सा को ख़ुश्क कर दे और दूसरी बार उसके अन्दरूनी हिस्से को ख़ुश्क करे, तो उसका ऊपरी हिस्सा तो पाक हो जायेगा लेकिन अन्दरूनी हिस्सा नजिस रहेगा।

(193) सूरज, नजिस चटाई को पाक कर देता है लेकिन अगर चटाई धागे से बनी हुई हो तो धागों का पाक होना मुश्किल है। इसी तरह घास दरख़्तों, दरवाज़ों और ख़िड़कियों का सूरज के ज़रिये पाक होना मुश्किल है।

(194) अगर धूप नजिस ज़मीन पर पड़े, उसके बाद शक हो कि धूप पडते वक़्त ज़मीन तर थी या नहीं, या उसकी तरी धूप के ज़रिये ख़ुश्क हुई या नहीं, तो वह ज़मीन नजिस होगी। और अगर शक पैदा हो कि धूप पड़ने से पहले ऐने निजासत ज़मीन पर से हटा दी गई थी या नहीं, या यह कि कोई चीज़ धूप को माने थी या नहीं, तो फ़िर भी यही सूरत होगी (यानी ज़मीन नजिस रहेगी)।

(195) अगर धूप नजिस दीवार की एक तरफ़ पड़े और उसके ज़रिये दीवार उस तरफ़ से भी ख़ुश्क हो जाये जिस पर धूप नहीं पड़ी, तो बईद नहीं की दिवार दोनों तरफ़ से पाक हो जाये।

4- इस्तेहाला

(196) अगर किसी नजिस चीज़ की जिन्स इस तरह बदल जाये कि वह एक पाक चीज़ की शक्ल इख़्तियार कर ले तो वह पाक हो जाती है। मिसाल को तौर पर अगर नजिस लकड़ी जल कर राख हो जाये, या कुत्ता नमक की खान में गिर कर नमक बन जाये तो वह पाक होगें। लेकिन अगर किसी नजिस की जिन्स न बदले, मसलन नजिस गेहूँ को पीस कर आटा बना लिया जाये या नजिस आटे की रोटी बना ली जाये तो वह पाक नहीं होगी।

(197) मिट्टी का लोटा या कोई दूसरी ऐसी चीज़ जो नजिस मिट्टी से बनाई जायें नजिस हैं। लेकिन वह कोयला जो नजिस लकड़ी से तैयार किया जाये अगर उसमें लकड़ी की कोई ख़ासियत बाक़ी न रहे तो वह पाक है।

(198) ऐसी नजिस चीज़ जिसके बारे में इल्म न हो कि आया उसका इस्तेहाला हुआ या नहीं (यानी जिन्स बदली है या नहीं) नजिस है।

5- इंक़िलाब

(199) अगर शराब ख़ुदबख़ुद या किसी चीज़ के मिलाने से, मसलन नमक मिलाने से सिरका बन जाये तो पाक हो जायेगी है।

(200) वह शराब जो नजिस अँगूर या उस जैसी किसी दूसरी चीज़ से तैयार की गई हो या कोई दूसरी निजासत शराब में गिर जाये तो वह शराब सिरका बन जाने पर पाक नहीं होगी।

(201) नजिस अंगूर, नजिस किशमिश और नजिस खज़ूर से जो सिरका तैयार किया जाये, वह नजिस है।

(202) अगर अंगूर या ख़जूर के डंठल भी उनके साथ हों और उनसे सिरका तैयार किया जाये तो कोई हरज नहीं बल्कि अगर उनके साथ खीरे और बैगन वग़ैरा भी डालें जाये तो कोई हरज नहीं है, चाहे उन्हें अंगूर या खजूर सिरका बनने से पहले ही डाल दिया जाये, इस शर्त के साथ कि सिरका बनने से पहले उनमें नशा न पैदा हुआ हो।

(203) अगर अंगूर के रस में, आंच पर रखने से या ख़ुद बख़ुद जोश आ जाये तो वह हराम हो जाता है और अगर वह उतना उबल जाये कि उसका दो तिहाई हिस्सा कम हो जाये और एक बाक़ी रह जाये तो हलाल हो जाता है और मसला (214) में बताया जा चुका है कि अंगूर का रस जोश देने से नजिस नहीं होता।

(204) अगर अंगूर के रस का दो तिहाइ बग़ैर जोश में आये कम हो जाये और जो बाक़ी बचे उसमें जोश आ जाये तो अगर लोग उसे अंगूर का रस कहें, शीरा न कहें तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर वह हराम है।

(205) अगर अंगूर के रस के बारे में मालूम न हो कि जोश में आया है या नहीं तो वह हलाल है। लेकिन अगर जोश में आ जाये और यह यक़ीन न हो कि उसका दो तिहाई कम हुआ है, तो वह हलाल नहीं होगा।

(206) अगर कच्चे अंगूर के गुच्छे में कुछ पक्के अंगूर भी हों और उस गुच्छे से निकले हुए रस को लोग अंगूर का रस न कहें, तो अगर उसमें जोश आ जाये तो उसका पीना हलाल है।

(207) अगर अंगूर का एक दाना किसी ऐसी चीज़ में गिर जाये जो आग पर जोश खा रहीं हो और वह भी जोश खाने लगे, तो अगर वह फट कर उस चीज़ में न मिल हो तो फ़क़त उस दाने का खाना हराम है।

(208) अगर कुछ देग़ों में शीरा पकाया जा रहा हो तो जो चमचा जोश में आई हुई देग़ में ड़ाला जा चुका हो, उसको ऐसी देग़ में डालना भी जायज़ है जिसमें अभी जोश न आया हो।

(209) जिस चीज़ के बारे में यह मालूम न हो कि वह कच्चे अंगूरों का रस है या पक्के अंगूरों का, अगर उसमें जोश आ जाये तो वह हलाल है।

6- इंतेक़ाल

(210) अगर इंसान या ख़ूने जहिन्दादार हैवान का ख़ून, कोई ऐसा हैवान जिसमें आम तौर पर ख़ून नहीं होता, इस तरह चूसले कि वह ख़ून उस हैवान के बदन का जुज़ हो जाये, मसलन जिस तरह मच्छर, इंसान या हैवान के बदन का ख़ून चूसले, तो वह ख़ून पाक हो जाता है और उसे इंतेक़ाल कहते हैं। लेकिन इलाज़ की ग़रज़ से इंसान का जो ख़ून, जोंक चूसती है वह जोंक के बदन का जुज़ नहीं बनता बल्कि इंसानी ख़ून ही रहता है इस लिए वह नजिस है।

(211) अगर कोई इंसान अपने बदन पर बैठे मच्छर को मार दे और वह ख़ून जो मच्छर ने चूसा हो उसके बदन से निकले तो ज़ाहिर यह है कि वह ख़ून पाक है, क्योंकि वह ख़ून इस क़ाबिल था कि मच्छर की ग़िज़ा बन जाये चाहे मच्छर के ख़ून चूसने और मारे जाने के बीच थोड़ा ही फ़ासला हो। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि इस ख़ून से इस हालत में परहेज़ किया जाये।

7- इस्लाम

(212) अगर कोई काफ़िर शहादतैन पढ़ले यानी किसी भी ज़बान में अल्लाह की वहदानियत और ख़ातेमुल अम्बिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स0) की नबूवत की गवाही दे, तो मुसलमान हो जाता है। अगरचे वह मुसलमान होने से पहले नजिस के हुक्म में था लेकिन मुसलमान हो जाने के बाद उसका बदन, थूक, नाक का पानी और पसीना पाक हो जाता है । लेकिन मुसलमान होने के वक़्त अगर उसके बदन पर कोई ऐने निजासत हो तो उसे दूर करना और उस मक़ाम को पानी से पाक करना ज़रूरी है। बल्कि अगर मुसलमान होने से पहले ही ऐने निजासत दूर हो चुकी हो तब भी एहतियाते वाजिब यह है कि उस मक़ाम को पानी से पाक किया जाये।

(213) एक काफ़िर के मुसलमान होने से पहले अगर उसका गीला लिबास उसके बदन से छू गया हो तो चाहे उसके मुसलमान होने के वक़्त वह लिबास उसके बदन पर हो या न हो, एहतियाते वाजिब की बिना पर उससे परहेज़ करना ज़रूरी है।

(214) अगर काफ़िर शहादतैन पढ़ले और यह मालूल न हो कि वह दिल से मुसलमान हुआ है या नहीं तो वह पाक है और अगर यह इल्म हो कि वह दिल से मुसलमान नहीं हुआ है लेकिन ऐसी कोई बात उससे ज़ाहिर न हुई हो जो तौहीद और रिसालत की गवाही के ख़िलाफ़ हो, तो तब भी यही सूरत है। (यानी वह पाक है।)

8- तबइयत

(215) तबइयत का मतलब यह है कि कोई नजिस चीज़ किसी दूसरी चीज़ के पाक होने की वजह से पाक हो जाये।

(216) अगर शराब सिरका हो जाये तो उसका बर्तन भी उस जगह तक पाक हो जाता है जहाँ तक शराब जोश खाकर पहुँची हो और अगर कपड़ा या कोई दूसरी चीज़ जो आम तौर पर उस (शराब के बर्तन ) पर रखी जाती हो और उससे नजिस हो गई हो, तो वह भी पाक हो जाती है लेकिन अगर बर्तन का बाहरी हिस्सा उस शराब से सन गया हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि शराब के सिरका हो जाने के बाद बर्तन के उस बाहरी हिस्से से परहेज़ किया जाये।

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