वह चीज़ें जिन पर तयम्मुम करना सही है

678.   मिट्टी, रेत, ढेले और पथ्थर अगर पाक हो तो उन पर तयम्मुम करना सही है और पक्की हुई मिट्टी जैसे ईंट वगैरा पर भी तयम्मुम करना सही है। 

679.   चूने, खड़िया के पत्थरों,सियाह संगे मरमर और तमाम क़िस्म के पत्थरों पर तयम्मुम करना सही है। लेकिन जवाहरात जैसे अक़ीक़, फ़िरोज़ा वगैरा पर तयम्मुम करना बातिल है। एहतियात वाजिब यह है कि पक्के हुए चूने और ख़ड़िया पर भी तयम्मुम न किया जाये।

680.   अगर मिट्टी, रेत, ढले या पत्थर न मिल सकें तो  जो गर्द व ग़ुबार क़ालीन, दरी या लिबास और उन जैसी दूसरी चीज़ों के ऊपर हो उस पर तयम्मुम  करे और अगर गर्द भी न मिल सके तो गारे पर और अगर गारा भी न मिल पाये तो एहतियाते वाजिब यह है कि बग़ैर तयम्मुम के नमाज़ पढ़े, लेकिन बाद में उसकी कज़ा भी वाजिब है।

681.   अगर कोई इंसान क़ालीन, दरी और या इन जैसी दूसरी चीज़ों को झाड़ कर मिट्टी जमा कर सकता हो तो उस का गर्द पर तयम्मुम करना बातिल है। इसी तरह अगर गारे को ख़ुश्क कर के उससे सूखी मिटटी हासिल कर सकता हो तो तर मिट्टी पर तयम्मुम करना बातिल है।

682.   जिस इंसान  के पास पानी न हो लेकिन बर्फ़ हो और वह उसे पिघला सकता हो तो ज़रूरी है कि वह उसे पिघला कर पानी बनाये और उससे वुज़ू या ग़ुस्ल करे। लेकिन अगर ऐसा करना मुमकिन न हो और उसके पास कोई ऐसी चीज़ भी न हो जिस पर तयम्मुम करना सही हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ बग़ैर वुज़ू या तयम्मुम के पढ़े और हालत में उस नमाज़ की क़ज़ा करे।

683.   अगर मिट्टी और रेत में कोई ऐसी चीज़ मिली हो जिस पर तयम्मुम करना सही न हो जैसे भूसा तो उस पर  तयम्मुम करना बातिल है। लेकिन अगर वह चीज़ इतनी कम हो कि उसे मिट्टी या रेत में न होने के बराबर समझ़ा जाये तो उस मट्टी पर तयम्मुम करना सही है।

684.   अगर किसी के पास तयम्मुम करने के लिए कोई चीज़ न हो तो अगर उसका ख़रीदना या किसी दूसरे तरीक़े से हासिल करना मुमकिन हो तो उस चीज़ को  हासिल करना चाहिए।

685.   मिट्टी की दीवार पर तयम्मुम करना सही है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि ख़ुश्क ज़मीन या मिट्टी के होते हुए तर ज़मीन या तर मिट्टी पर तयम्मुम न किया जाये।

686.   जिस चीज़ पर इंसान तयम्मुम करे उस का पाक होना ज़रूरी है और अगर उसके पास कोई ऐसी पाक चीज़ न हो जिस पर तयम्मुम करना सही हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि बग़ैर वुज़ू व तयम्मुम के नमाज़ पढ़े और बाद में उसकी कज़ा भी पढ़े।

687.   अगर इंसान को किसी चीज़ के बारे में यक़ीन हो कि इस पर तयम्मुम करना सही है और वह उस पर तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ले और बाद में उसे पता चले कि उस चीज़ पर तयम्मुम करना सही नही था तो ज़रूरी है कि जो नमाज़ें उस तयम्मुम के साथ पढ़ी हैं उसे दोबारा पढ़े।

688.   जिस चीज़ पर तयम्मुम किया जाये वह ग़स्बी न हो।

689.   ग़स्ब की हुई फ़ज़ा में तयम्मुम करना बातिल नही है। अगर कोई इंसान अपनी ज़मीन में अपने हाथ मिट्टी पर मारे और फिर मालिक की इजाज़त के बग़ैर दूसरे की ज़मीन में दाख़िल हो जाये और हाथों को पेशानी पर फेरे तो उसका तयम्मुम बातिल नही होगा।

690.   अगर कोई इंसान न जानता हो कि जिस चीज़ पर तयम्मुम कर रहा है वह ग़स्बी है, या  भूले से किसी ग़स्बी चीज़ पर तयम्मुम कर ले तो उसका तयम्मुम सही है। लेकिन अगर उसने ख़ुद उस चीज़ को  ग़स्ब किया हो तो ेहतियाते वाजिब की बिना पर तयम्मुम बातिल है।

691.   अगर कोई इंसान ग़स्बी जगह में क़ैद हो और उस जगह का पानी और मिट्टी दोनों ग़स्बी हों तो उसे तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़नी चाहिए।

692.   मुस्तहब है कि जिस चीज़ पर तयम्मुम किया जाये उस पर गरदो ग़ुबार मौजूद हो जो हाथों पर लग जाये और उस पर हाथ मारने के बाद मुस्तहब है कि  हाथों को हिलाया जाये ताकि उनसे गर्द झड़ जाये।  

693.   गढ़े वाली ज़मीन, रास्ते की मिट्टी और ऐसी शूर ज़मीन पर जिस पर नमक की तह न जमी हो तयम्मुम करना मकरूह है और अगर उस पर नमक की तह जम गई हो तो उस पर तयम्मुम बातिल है।