बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

पैग़म्बरे इस्लाम, ख़ातमुन नबीयीन, अशरफ़ुल मुरसलीन, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.) और हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की विलादत की तारीख़ पर हम दुनिया के तमाम मुसलमानों और ख़सूसन शियों को मुबारकबाद अर्ज़ करते हैं। हमें उम्मीद है कि पैग़म्बरे इस्लाम और अहले बैत अलैहिमु अस्सलाम की तालीमात पर अमल करते हुए इस्लामी समाज अबदी सआदत हासिल करेगा। हमें उस दिन का इंतेज़ार है जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बेटे और उनके आख़री वसी हज़रत महदी मऊद अलैहिस्सलाम ज़हूर फरमा कर इस दुनिया में, अंधेरों को दूर कर के रौशनी फैलायेंगे, ज़ुल्म और ज़ालिमों को ख़त्म कर के इस दुनियां को अदल व इंसाफ़ से भर देंगे। उस वक़्त हम पूरी दुनियां में कल्म-ए-हक़ को फूलता फलता देखेंगें, इंशाल्लाह।
इस छोटे से मक़ाले में हम पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के विलादत से बेसत तक के मुख़्तसर हालात लिख रहे हैं और इस मक़ाले के आख़िर में आपकी एक सौ हदीसें भी लिख रहे हैं, जो हमारी ज़िन्दगी में मशअले राह साबित होंगी।

मिलादे नूर

यूँ तो इंसानी तारीख़ में बहुत से अहम दिन आये और गुज़र गयें, लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ. व आलिहि वसलल्लम) की विलादत का दिन वह अज़ीम दिन है, जिसे इंसान भुला नही सकता। इस दिन अल्लाह के आख़री नबी इस दुनिया में तशरीफ़ लाये। इस दिन उस अज़ीम इंसान ने इस दुनिया में क़दम रखा जिसकी ज़ियारत के बहुत से अंबिया मुशताक़ थे। इस दिन दुनिया में वह आये जिनके बारे में, उनसे पहले पैग़म्बरों ने अपने वसीयों को वसीयत की थी कि अगर वह तुम्हारे सामने इस दुनिया में आगये तो उन्हें हमारा सलाम कहना। मुसलमानों की फ़ज़ीलत इस से बढ़ कर और क्या हो सकती है कि इन्हें वह चीज़ नसीब हुई जिसकी तमन्ना लिए हुए, बहुत से नबी इस दुनिया से रुख़सत हो गये। चूँकि अल्लाह ने हमें यह अज़ीम सआदत अता की है, लिहाज़ा हमें चाहिए कि हम आपकी उम्मत का जुज़ बन कर रहें और आपकी तालीमात की क़द्र करते हुए उन पर अमल करें।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की विलादत की तारीख़

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की विलादत की तारीख़ में मुसलमानों के दरमियान इख़्तेलाफ़ है। शिया आपकी विलादत सतरह रबी उल अव्वल को मानते हैं और सुन्नी आपकी विलादत के बारे में बारह रबी उल अव्वल के काइल है। इसी तरह आपकी विलादत के दिन में भी मुसलमानों में इख़्तेलाफ़ है शियों का मानना है आपकी विलादत जुमे के दिन हुई, और सुन्नी कहते हैं कि जिस दिन आपकी विलादत हुई वह पीर का दिन था।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के वालदैन

आपके वालिद हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुल मुत्तलिब हैं। हज़रत अब्दुल्लाह वह इंसान हैं जो खानदानी शराफ़त के एतेबार से दुनिया भर में मुमताज़ हैं। हज़रत अब्दुल्लाह के वालिद जनाबे अब्दुल मुत्तलिब है जिनकी अज़मत व हैबत का यह आलम था, कि जब अबरह खान-ए-काबा को गिराने के मक़सद से मक्के आया और आप उसके पास गये, तो वह आपको देखने के न चाहते हुए भी आपके एहतेराम में खड़ा हो गया।
हज़रत अब्दुल्लाह इस खानदान से होने के साथ साथ अपने ज़माने के खूबसूरत, रशीद, मोद्दब और अक़्लमंद इंसान थे। यूँ तो मक्के की बहुत सी लड़कियां आप से शादी रचाना चाहती थी, मगर चूँकि नूरे नबूवत को एक खास आग़ोश की जरूरत थी, इस लिए आपने सबको नज़र अंदाज़ करते हुए आमिना बिन्ते वहब से शादी की।
तारीख़ में मिलता है कि अभी इस शादी को चालीस दिन भी न हुए थे कि जनाब अब्दुल्लाह ने तिजारत की वजह से शाम का सफ़र किया और वहाँ से लौटते वक़्त आप अपने नानिहाल वालों से मिलने के लिए मदीने गये और वहीँ पर आपका इंतेक़ाल हो गया। यानी पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ. व आलिहि वसल्लम) जब इस दुनिया में तशरीफ़ लाये तो आपके सिर से बाप का साया उठ चुका था।
चूँकि जनाबे आमिना, जनाबे अब्दुल्लाह के साथ ज़्यादा दिन न रह सकी थीं, इस लिए वह उनकी यादगार, अपने बेटे से बेहद प्यार करती थीं। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) पाँच साल के हुए तो जनाबे आमिना, जनाबे अब्दुल मुत्तलिब से इजाज़त लेकर अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए उम्मे एमन नामी कनीज़ के साथ मदीना गईं । इस सफ़र में पैग़म्बर (स.) भी आपके साथ थे और यह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का पहला सफ़र था। जब यह क़ाफ़िला मक्के की तरफ़ वापस लौट रहा था तो रास्ते में अबवा नामी जगह पर जनाबे आमिना बीमार हुई और आपका वहीं पर इंतेक़ाल हो गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी वालदा को वहीँ दफ़्न किया और उम्मे एमन के साथ मक्के आ गये।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व अहले बैत अलैहिमु अस्सलाम के चाहने वाले आज भी अबवा में जनाबे आमिना की क़ब्र पर ज़ियारत के लिए जाते है। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) इस हादसे के पचास साल के बाद इस मक़ाम से गुज़रे तो असहाब ने देखा कि आप सवारी से नीचे उतर कर, किसी से कुछ कहे बग़ैर एक तरफ़ आगे बढ़ने लगे, कुछ असहाब यह जानने के लिए कि आप कहाँ जा रहे हैं, आपके पीछे चलने लगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) एक जगह पर जा कर रुके और बैठ कर क़ुरआन पढ़ने लगे आप क़ुरआन पढ़ते जाते थे और उस जगह को ग़ौर से देखे जाते थे, कुछ देर के बाद आपकी आँखों से आँसू टपकने लगे। असहाब ने सवाल किया या रसूलुल्लाह आप क्योँ रो रहे हैं ? आपने फ़रमाया कि यहाँ मेरी माँ की क़ब्र है आज से पचास साल पहले मैंने उन्हें यहाँ पर दफ़्न किया था।
माँ का साया सिर से उठ जाने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की देख रेख की पूरी ज़िम्मेदारी जनाबे अब्दुल मुत्तलिब ने संभाली। वह आपको बहुत प्यार करते थे और अपने बेटों से कहते थे कि यह बच्चा दूसरे बच्चों से मुख़तलिफ़ है। अभी तुम इसके बारे में कुछ नही जानते हो, यह बच्चा आने वाले वक़्त में अल्लाह का नुमाइंदा बनेगा। हाँ जनाबे अब्दुल मुत्तलिब इस बच्चे के मासूम चेहरे पर नूरे नबूवत को देख रहे थे। वह समझ चुके थे कि जल्द ही इनके पास वही के ज़रिये अल्लाह का वह दीन आने वाला है जो दुनिया के तमाम अदयान पर छा जायेगा। हाँ जनाबे अब्दुल मुत्तलिब की निगाहें वह सब देख रही थीं जिसे दूसरे लोग नही देख पा रहे थे।
जब जनाबे अब्दुल मुत्तलिब का आख़री वक़्त क़रीब आया, तो आपके बड़े बेटे जनाबे अबुतालिब ने आपके चेहरे पर परेशानी के कुछ आसार देखे। वह आगे बढ़े और अपने वालिद से इस परेशानी का सबब पूछा। जनाबे अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि मुझे मौत से कोई खौफ़ नही मैं सिर्फ़ इस बच्चे की तरफ़ से फ़िक्रमंद हूँ, कि इसे किस के सुपुर्द करूँ ! क्या इस बच्चे की सरपरस्ती को तुम क़बूल करते हो ? क्या तुम इस बात वादा करते हो कि मेरी तरफ़ से इसकी किफ़ालत करोगे ? जनाबे अबुतालिब ने जवाब दिया कि बाबा मुझे मंज़ूर है। जनाबे अबूतालिब ने अपने बाबा से किये हुए वादे को अपनी ज़िन्दगी के आख़री साँस तक निभाया और पूरी ज़िन्दगी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की मदद व हिफ़ाज़त करते रहे। जनाबे अबूतालिब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को अपने बेटों से ज़्यादा चाहते थे और आपकी ज़ोजा फ़ातिमा बिन्ते असद यानी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की वालदा ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को माँ की तरह प्यार दिया।

पैग़म्बरे अकरम (स.) के सफ़र

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अरब से बाहर सिर्फ़ दो सफ़र किये और आप दोनों ही बार शाम तशरीफ़ ले गये। आपने यह दोनों सफ़र बेसत से पहले किये। पहली बार आप बारह साल की उम्र में अपने चचा अबुतालिब के साथ गये और दूसरी बार पच्चीस साल की उम्र में जनाबे ख़दीजा की तरफ़ से तिजारत के लिए। बेसत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अरब के अन्दर बहुतसे सफ़र किये, मगर अरब से बाहर आपके सिर्फ़ यही दो सफ़र तारीख़ में दर्ज हैं।

बेसत से पहले पैग़म्बरे अकरम (स.) का किरदार

किसी भी इंसान की समाजी ज़िन्दगी में जो चीज़ सबसे ज़्यादा असर अंदाज़ होती है वह उस इंसान का माज़ी का किरदार है। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक ख़ासियत यह थी कि वह दुनिया के किसी भी मदर्से में पढ़ने के लिए नही गये। आपका किसी मदर्से में न पढ़ना इस बात का सबब बना कि जब आपने लोगों के सामने कुरआन की आयतों की तिलावत की तो वह ताज्जुब में पड़ गये और उनसे मुहब्बत करने लगे। अगर आप दुनिया के किसी मदर्से में पढ़े होते, तो लोग यही समझते कि यह इनकी मदर्से की तालीम का कमाल है।
आपकी दूसरी सिफ़त यह है कि आपने उस माहोल में, जिसमें कुछ लोगों को छोड़ कर, सभी बुतों के सामने सजदा करते थे, कभी किसी बुत के सामने सिर नही झुकाया। लिहाज़ जब आपने बुतों और बुत पूजने वालों की मुख़ालेफ़त की तो कोई आप से यह न कह सका कि आप हमें क्योँ मना कर रहे हों, आप भी तो कभी इनके सामने सिर झुकाते थे।
आपकी एक खासियत यह थी कि आपने मक्के जैसे शहर में, जवानी की पाक व पाकीज़ा ज़िंदगी गुज़ारी और किसी बुराई में नही पड़े। जबकि उन दिनों मक्का शहर बुराईयों का गढ़ था।
बेसत से पहले, आप मक्के में सादिक़, अमीन और आक़िल माने जाते थे। आप लोगों के दरमियान मुहम्मद अमीन के नाम से मशहूर थे। सदाक़त व अमानत में लोग, आप पर बहुत ज़्यादा भरोसा करते थे। बहुत से कामों में आपकी अक़्ल पर एतेमाद किया जाता था। अक़्ल, सदाक़त व आमानत आपके ऐसे सिफ़ात थे जिनमें आप बहुत मशहूर थे। यहाँ तक कि जब लोग आपको अज़ीयतें देने लगें और आपकी बातों का इंकार करने लगे, तो आपने लोगों से पूछा कि क्या तुमने आज तक मुझसे कोई झूट सुना है ? सबने कहा, नही, हम आपको सच्चा और अमानतदार मानते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की शादी

पैग़म्बरे इस्लाम(स.) जब पच्चीस साल के हुए तो उन्होंने जनाबे ख़दीजा की पेश कश पर उनसे शादी की। जनाबे ख़दीजा एक मालदार औरत थीं और आपकी ज़ात में ज़ाहिरी व बातिनी तमाम ख़ूबिया पायी जाती थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेसत के बाद उन्होंने अपनी पूरी दौलत इस्लाम पर कुरबान कर दी। उन्होंने पूरी ज़िन्दगी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का दिल व जान से साथ दिया। वह इस दुनिया से उस वक़्त रुख़सत हुईं जब मस्जिदुल हराम में सिर्फ़ तीन इंसान नमाज़ पढ़ते थे, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) हज़रत अली अलैहिस्सलाम और जनाबे ख़दीजा अलैहा अस्सलाम।
इस शादी के नतीजे में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया में तशरीफ़ लाईं, जो आगे चलकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ोजा और ग्यारह मासूम इमामों की माँ बनी। हमारा दरूद व सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम और आपकी औलाद पर।
इस मक़ाले के आख़िर में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक सौ हदीसें लिख रहें हैं, जिन पर अमल कर के हम अपनी दीनी व दुनयवी ज़िन्दगी को कामयाब बना सकते हैं।
1.       आदमी जैसे जैसे बूढ़ा होता जाता है उसकी हिरस व तमन्नाएं जवान होती जाती हैं।
2.       अगर मेरी उम्मत के आलिम व हाकिम फ़ासिद होंगे तो उम्मत फ़ासिद हो जायेगी और अगर यह नेक होंगें तो उम्मत नेक होगी।
3.       तुम सब, आपस में एक दूसरे की देख रेख के ज़िम्मेदार हो।
4.       माल के ज़रिये सबको राज़ी नही किया जा सकता, मगर अच्छे अख़लाक़ के ज़रिये सबको ख़ुश रखा जा सकता है।
5.       नादारी एक बला है, जिस्म की बीमारी उससे बड़ी बला है और दिल की बीमारी (कुफ़्र व शिर्क) सबसे बड़ी बला है।
6.       मोमिन हमेशा हिकमत की तलाश में रहता है।
7.       इल्म को बढ़ने से नही रोका जा सकता।
8.       इंसान का दिल, उस “ पर ” की तरह है जो बयाबान में किसी दरख़्त की शाख़ पर लटका हुआ हवा के झोंकों से ऊपर नीचे होता रहता है।
9.       मुसलमान, वह है, जिसके हाथ व ज़बान से मुसलमान महफ़ूज़ रहें।
10.   किसी की नेक काम के लिए राहनुमाई करना भी ऐसा ही है, जैसे उसने वह नेक काम ख़ुद किया हो।
12.   माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
13.   औरतों के साथ बुरा बर्ताव करने में अल्लाह से डरों और जो नेकी उनके शायाने शान हो उससे न बचो।
14.   तमाम इंसानों का रब एक है और सबका बाप भी एक ही है, सब आदम की औलाद हैं और आदम मिट्टी से पैदा हुए है लिहाज़ तुम में अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा अज़ीज़ वह है जो तक़वे में ज़्यादा है।
15.   ज़िद, से बचो क्योंकि इसकी बुनियाद जिहालत है और इसकी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
16.   सबसे बुरा इंसान वह है, जो न दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करता हो और न ही दूसरों की बुराई को नज़र अंदाज़ करता हो, और उससे भी बुरा इंसान वह है जिससे दूसरे इंसान न अमान में हो और न उससे नेकी की उम्मीद रखते हों।
17     ग़ुस्सा न करो और अगर ग़ुस्सा आ जाये, तो अल्लाह की क़ुदरत के बारे में ग़ौर करो।
18     जब तुम्हारी तारीफ़ की जाये, तो कहो, ऐ अल्लाह ! तू मुझे उससे अच्छा बना दे जो ये गुमान करते है और जो यह मेरे बारे में नही जानते उसको माफ़ कर दे और जो यह कहते हैं मुझे उसका मसऊल क़रार न दे।
19     चापलूस लोगों के मूँह पर मिट्टी मल दो। (यानी उनको मुँह न लगाओ)
20     अगर अल्लाह किसी बंदे के साथ नेकी करना चाहता है, तो उसके नफ़्स को उसके लिए रहबर व वाइज़ बना देता है।
21     मोमिन हर सुबह व शाम अपनी ग़लतियों का गुमान करता है।
22     आपका सबसे बड़ा दुश्मन नफ़्से अम्मारह है, जो ख़ुद आपके अन्दर छुपा रहता है।
23     सबसे बहादुर इंसान वह हैं जो नफ़्स की हवा व हवस पर ग़ालिब रहते हैं।
24     अपने नफ़्स की हवा व हवस से लड़ो, ताकि अपने वुजूद के मालिक बने रहो।
25     ख़ुश क़िस्मत हैं, वह लोग, जो दूसरों की बुराई तलाश करने के बजाये अपनी बुराईयों की तरफ़ मुतवज्जेह रहते हैं।
26     सच, से दिल को सकून मिलता है और झूट से शक व परेशानियाँ बढ़ती है।
27     मोमिन दूसरों से मुहब्बत करता है और दूसरे उससे मुहब्बत करते हैं।
28     मोमेनीन आपस में एक दूसरे इसी तरह वाबस्ता रहते हैं जिस तरह किसी इमारत के तमाम हिस्से आपस में एक दूसरे से वाबस्ता रहते हैं।
29     मोमेनीन की आपसी दोस्ती व मुब्बत की मिसाल जिस्म जैसी है जब ज़िस्म के एक हिस्से में दर्द होता है तो पर बाक़ी हिस्से भी बे आरामी महसूस करते हैं।
30     तमाम इंसान कंघें के दाँतों की तरह आपस में बराबर हैं।
31     इल्म हासिल करना तमाम मुसलमानों पर वाजिब है।
32     फ़कीरी, जिहालत से, दौलत, अक़्लमंदी से और इबादत, फ़िक्र से बढ़ कर नही है।
33     झूले से कब्र तक इल्म हासिल करो।
34     इल्म हासिल करो चाहे वह चीन में ही क्योँ न हो।
35     मोमिन की शराफ़त रात की इबादत में और उसकी इज़्ज़त दूसरों के सामने हाथ न फैलाने में है।
36     साहिबाने इल्म, इल्म के प्यासे होते है।
37     लालच इंसान को अंधा व बहरा बना देता है।
39     परहेज़गारी, इंसान के ज़िस्म व रूह को आराम पहुँचाती है।
40     अगर कोई इंसान चालीस दिन तक सिर्फ़ अल्लाह के लिए ज़िन्दा रहे, तो उसकी ज़बान से हिकमत के चश्मे जारी होंगे।
41     मस्जिद के गोशे में तन्हाई में बैठने से ज़्यादा अल्लाह को यह पसंद है, कि इंसान अपने ख़ानदान के साथ रहे।
42     आपका सबसे अच्छा दोस्त वह है, जो आपको आपकी बुराईयों की तरफ़ तवज्जोह दिलाये।
43     इल्म को लिख कर महफ़ूज़ करो।
44     जब तक दिल सही न होगा, ईमान सही नही हो सकता और जब तक ज़बान सही नही होगी दिल सही नही हो सकता।
46     तन्हा अक़्ल के ज़रिये ही नेकी तक पहुँचा जा सकता है लिहाज़ा जिनके पास अक़्ल नही है उनके पास दीन भी नही हैं।
47     नादान इंसान, दीन को, उसे तबाह करने वाले से ज़्यादा नुक़्सान पहुँचाते हैं।
48     मेरी उम्मत के हर अक़्लमंद इंसान पर चार चीज़ें वाजिब हैं। इल्म हासिल करना, उस पर अमल करना, उसकी हिफ़ाज़त करना और उसे फैलाना।
49     मोमिन एक सुराख़ से दो बार नही डसा जाता।
50     मैं अपनी उम्मत की फ़क़ीरी से नही, बल्कि बेतदबीरी से डरता हूँ।
51     अल्लाह ज़ेबा है और हर ज़ेबाई को पसंद करता है।
52     अल्लाह, हर साहिबे फ़न मोमिन को पसंद करता।
53     मोमिन, चापलूस नही होता।
54     ताक़तवर वह नही,जिसके बाज़ू मज़बूत हों, बल्कि ताक़तवर वह है जो अपने ग़ुस्से पर ग़ालिब आ जाये।
56     सबसे अच्छा घर वह है, जिसमें कोई यतीम इज़्ज़त के साथ रहता हो।
57     कितना अच्छा हो, अगर हलाल दौलत, किसी नेक इंसान के हाथ में हो।
58     मरने के बाद अमल का दरवाज़ा बंद हो जाता है,मगर तीन चीज़े ऐसी हैं जिनसे सवाब मिलता रहता है, सदक़-ए-जारिया, वह इल्म जो हमेशा फ़ायदा पहुँचाता रहे और नेक औलाद जो माँ बाप के लिए दुआ करती रहे।
59     अल्लाह की इबादत करने वाले तीन गिरोह में तक़सीम हैं। पहला गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत डर से करता है और यह ग़ुलामों वाली इबादत है। दूसरा गिरोह वह जोअल्लाह की इबादत इनाम के लालच में करता है और यह ताजिरों वाली इबादत है। तीसरा गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत उसकी मुहब्बत में करता है और यह इबादत आज़ाद इंसानों की इबादत है।
60     ईमान की तीन निशानियाँ हैं, तंगदस्त होते हुए दूसरों को सहारा देना, दूसरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए अपना हक़ छोड़ देना और साहिबाने इल्म से इल्म हासिल करना।
61     अपने दोस्त से दोस्ती का इज़हार करो ताकि मुब्बत मज़बूत हो जाये।
62     तीन गिरोह दीन के लिए ख़तरा हैं, बदकार आलिम, ज़ालिम इमाम और नादान मुक़द्दस।
63     इंसानों को उनके दोस्तों के ज़रिये पहचानों, क्योँकि हर इंसान अपने हम मिज़ाज़ इंसान को दोस्त बनाता है।
64     गुनहाने पिनहनी (छुप कर गुनाह करना) से सिर्फ़ गुनाह करने वाले को नुक़्सान पहुँचाता है लेकिन गुनाहाने ज़ाहिरी (खुले आम किये जाने वाले गुनाह) पूरे समाज को नुक़्सान पहुँचाते है।
65     दुनिया के कामों में कामयाबी के लिए कोशिश करो मगर आख़ेरत के लिए इस तरह कोशिश करो कि जैसे हमें कल ही इस दुनिया से जाना है।
66     रिज़्क़ को ज़मीन की तह में तलाश करो।
67     अपनी बड़ाई आप बयान करने से इंसान की क़द्र कम हो जाती है और इनकेसारी से इंसान की इज़्ज़त बढ़ती है।
68     ऐ अल्लाह ! मेरी ज़्यादा रोज़ी मुझे बुढ़ापे में अता फ़रमाना।
69     बाप पर बेटे के जो हक़ हैं उनमें से यह भी हैं कि उसका अच्छा नाम रखे, उसे इल्म सिखाये और जब वह बालिग़ हो जाये तो उसकी शादी करे।
70     जिसके पास क़ुदरत होती है, वह उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करता है।
71     सबसे वज़नी चीज़ जो आमाल के तराज़ू में रखी जायेगी वह ख़ुश अखलाक़ी है।
72     अक़्लमंद इंसान जिन तीन चीज़ों की तरफ़ तवज्जोह देते हैं, वह यह हैं ज़िंदगी का सुख, आखेरत का तोशा (सफ़र में काम आने वाले सामान) और हलाल ऐश।
73     ख़ुश क़िसमत हैं, वह इंसान, जो ज़्यादा माल को दूसरों में तक़सीम कर देते हैं और ज़्यादा बातों को अपने पास महफ़ूज़ कर लेते हैं।
74     मौत हमको हर ग़लत चीज़ से बे नियाज़ कर देती है।
75     इंसान हुकूमत व मक़ाम के लिए कितनी हिर्स करता है और आक़िबत में कितने रंज व परेशानियाँ बर्दाश्त करता है।
76     सबसे बुरा इंसान, बदकार आलिम होता है।
77     जहाँ पर बदकार हाकिम होंगे और जाहिलों को इज़्ज़त दी जायेगी वहाँ पर बलायें नाज़िल होगी।
78     लानत हो उन लोगों पर जो अपने कामों को दूसरों पर थोपते हैं।
79     इंसान की ख़ूबसूरती उसकी गुफ़्तुगू में है।
80     इबादत की सात क़िस्में हैं और इनमें सबसे अज़ीम इबादत रिज़्क़े हलाल हासिल करना है।
81     समाज में आदिल हुकूमत का पाया जाना और क़ीमतों का कम होना, इंसानों से अल्लाह के ख़ुश होने की निशानी है।
82     हर क़ौम उसी हुकूमत के काबिल है जो उनके दरमियान पायी जाती है।
83     ग़लत बात कहने से कीनाह के अलावा कुछ हासिल नही होता।
85     जो काम बग़ैर सोचे समझे किया जाता है उसमें नुक़्सान का एहतेमाल पाया जाता है।
87     दूसरों से कोई चीज़ न माँगो, चाहे वह मिस्वाक करने वाली लकड़ी ही क्योँ न हो।
88     अल्लाह को यह पसंद नही है कि कोई अपने दोस्तों के दरमियान कोई खास फ़र्क़ रखे।
89     अगर किसी चीज़ को फाले बद समझो, तो अपने काम को पूरा करो, अगर कोई किसी बुरी चीज़ का ख़्याल आये तो उसे भूल जाओ और अगर हसद पैदा हो तो उससे बचो।
90     एक दूसरे की तरफ़ मुहब्बत से हाथ बढ़ाओ क्योँकि इससे कीनह दूर होता है।
91     जो सुबह उठ कर मुसलमानों के कामों की इस्लाह के बारे में न सोचे वह मुसलमान नही है।
92     ख़ुश अख़लाकी दिल से कीनह को दूर करती है।
93     हक़ीक़त कहने में, लोगों से नही डरना चाहिए।
94     अक़लमंद इंसान वह है जो दूसरों के साथ मिल जुल कर रहे।
95     एक सतह पर ज़िंदगी करो ताकि तुम्हारा दिल भी एक सतह पर रहे। एक दूसरे से मिलो जुलो ताकि आपस में मुहब्बत रहे।
96     मौत के वक़्त, लोग पूछते हैं कि क्या माल छोड़ा और फ़रिश्ते पूछते हैं कि क्या नेक काम किये।
97     वह हलाल काम जिससे अल्लाह को नफ़रत है, तलाक़ है।
98     सबसे बड़ा नेक काम, लोगों के दरमियान सुलह कराना।
99     ऐ अल्लाह तू मुझे इल्म के ज़रिये बड़ा बना, बुर्दुबारी के ज़रिये ज़ीनत दे, परहेज़गारी से मोहतरम बना और तंदरुस्ती के ज़रिये खूबसूरती अता कर।